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किसानों के लिए वरदान साबित हो सकता है बायोचार

खराखेल फर्रुखाबादी, फतेहगढ़। एकात्म अभियान के तहत फतेहगढ़ के कई गांवों में योग-ध्यान के साथ-साथ ग्रामीणों को खेती-किसानी से आय में वृद्धि का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है. श्री रामचंद्र मिशन, हार्टफुलनेस केंद्र फतेहगढ़ के जोनल समन्वयक डॉ. सुधीर श्रीवास्तव ने बताया कि पोषक तत्वों के आभाव और उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से मिट्टी की सेहत दिनप्रति दिन खराब होती जा रही है. पायरोलिसिस विधि से तैयार बायोचार (ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में तैयार कोयला) पर जीवामृत डालकर तीन दिन तक रखते हैं. छिद्रयुक्त बायोचार में जीवामृत अच्छी तरह अवशोषित होने से मिट्टी के लिए भोजन बहुत दिनों तक संरक्षित रहता है. इसका प्रयोग खेती किसानी और पौधरोपण में करते हैं. गुड़गांव से आए राकेश वर्मा ने किसानों को बताया कि 200 लीटर पानी को एक ड्रम में भरकर सम्भव हो सके तो उसमें एक ही गाय का 20 किलो. गोबर, 20 लीटर गोमूत्र, 2 किलो. गुड़ जिसे जानवर भी नहीं खाते हैं, 2 किलो. बेसन और 2 किलो. पीपल के पेड़ के नीचे की मिट्टी को डालकर एक से दो बार मिश्रण को डंडे से चलाकर फिर ड्रम को कपड़े से ढककर रखे रहने देते हैं. 20 दिन में जीवामृत तैयार हो जाता है. हैदराबाद के बी जगनमोहन और रीता सिंह ने बताया कि बायोचार का खेती में प्रयोग करने से करीब तीस फीसदी पैदावार में वृद्धि होगी तो किसानों की आय भी बढ़ेगी. राजेंद्र रेड्डी ने बताया कि दिए गए लिंक ( https://youtu.be/92nE1Zz2Icw?si=d-4blxjJfYoCW8oN) पर जाकर बायोचार बनाने की विधि को किसान जान सकते हैं. डॉ. सुधीर ने बताया कि एकात्म अभियान तीन सौ गांव तक पहुंच चुका है. हर रविवार को ध्यान और योग के बाद खेती किसानी में 'बायोचार एक उन्नत विधि' विषय पर कार्यशाला आयोजित की जाती है. किसान महरूपुर सहजू स्थित ध्यान केंद्र पर आकर निःशुल्क लाभ ले सकते हैं।

3/18/20251 मिनट पढ़ें